प्रिंटर क्या है इसके प्रकार – Printer and its types

प्रिंटर  (मुद्रण यंत्र) –

परिभाषा –

Printer एक Hard copy आउटपुट डिवाइस है, जिसके द्वारा प्राप्त किया गया output, मूर्त रूप (Tangible form) में होता है।

इसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त output / Result / Information आदि को print करके, Hard copy के रूप में प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

इसके द्वारा प्रदान किया गया printed output, एक स्थायी दस्तावेज (permanent document) के रूप में होता है।

Printer के द्वारा Computer के soft copy output को, Hard copy output में परिवर्तित कर दिया जाता है। एवं यह एक ऑनलाइन output device है।


प्रिन्टर के कार्य | Functions of Printer

  • Computer द्वारा दिये गये Command को समझना।
  • Control Signal उत्पन्न करना।
  • Print mechanism को activate करना, ताकि वह computer से प्राप्त होने वाले output को प्रिन्ट कर सके।

Printer की विशेषताऍं | Characteristic of Printer | Features of Printer

  1. Speed (गति)-

यह प्रिन्टर के गति को प्रदर्शित करता है, कि एक प्रिंटर कितनी तेज गति से कार्य करता है।

सामान्यत: प्रिंटर की गति-

  • CPS (Character per second)
  • LPM (Line per minute)
  • PPM (Page per minute)

से मापी जाती है।

  1. Quality (गुणवत्ता)-

यह प्रिंटर के Printing quality को दर्शाता है, कि Printer कितनी अच्छी quality का प्रिन्ट प्रदान कर सकता है।

यह Printer के resolution (Dots Per Inch) पर निर्भर करता है। High resolution प्रिंटर high quality के output प्रदान करते हैं।

  1. इन्टरफेस (आदान-प्रदान)-

इसका तात्पर्य है कि printer को कैसा इन्टरफेस प्रदान किया गया है। मतलब यह कम्प्यूटर से output पैरलल ट्रान्समिशन के द्वारा ग्रहण करेगा, कि सीरियल ट्रान्समिशन के द्वारा।

  1. Colour (रंग)-

इसका तात्पर्य है कि printer मोनोक्रोम (Black & White) आउट प्रदान करता है, या रंगीन।

  1. Connectivity-

इसका तात्पर्य है कि printer को कम्प्यूटर से कैसे कनेक्ट किया जाय।

Printer को मोबाइल व कम्प्यूटर आदि से दो तरीकों से कनेक्ट किया जा सकता है –

  • Wired medium- USB केबल के द्वारा।
  • Wireless अथवा Cordless medium – Wi-fi आदि के द्वारा।
  1. Type (प्रकार)

यह प्रिंटर के प्रकार को दर्शाता है। जैसे कि प्रिंटर लेजर है या इंकजेट, मोनोक्रोम है या कलर आदि।

  1. Purpose –

यह प्रिंटर के विशेष उद्देश्य को दर्शाता है कि printer का मुख्य उद्देश्य किस प्रकार के document को print करना है।

जैसे- Photo printer फोटो को print करने के लिए, चेक (cheque) प्रिंटर, बैंक के चेक को प्रिंट करने के उद्देश्य के लिए होते हैं।

  1. Size-

इसका तात्पर्य है कि प्रिंटर कितने size तक के document को प्रिंट कर पायेगा।

जैसे ज्यादातर प्रिंटर A4 साइज के कागज को ही प्रिंट कर पाते हैं।

  1. Networking-

इसका तात्पर्य है कि प्रिंटर में नेटवर्किंग की सुविधा है या नही।

 


प्रिंटर की एक और परिभाषा, जो प्रिंटर को और गहराई से समझाती है-

 Printer एक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल उपकरण है, जो कि दो components – इलेक्ट्रानिक सर्किट और मैकेनिकल एसेम्बलीज से मिलकर बना होता है। जिसका कार्य कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट को printed form में प्रदान करना होता है।

  •  इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बोर्ड – यह प्रिंटर का Mother-board यानी कि main-board होता है, जो सभी मैकेनिकल एसेम्बलीज को नियंत्रित करता है।
  •  मैकेनिकल एसेम्बलीज – ये प्रिंटर के अलग-अलग प्रकार के पार्ट्स होते हैं, जिनको एसेम्बल (एक साथ एकत्रित) किया जाता है, प्रिंटर के अन्दर।

मैकेनिकल एसेम्बलीज में निम्न parts या component शामिल होते हैं –

  • प्रिंट हेड एसेम्बली
  • प्रिंट केरिएज एसेम्बली
  • रिबन एसेम्बली
  • पेपर मूवमेन्ट एसेम्बली
  • सेन्सर एसेम्बलीज आदि।

 

Printer के प्रकार | Types of Printer  | प्रिंटर के प्रकार

प्रिंटर कई प्रकार के होते हैं, इनको हम विभिन्न अधारों में बॉंट सकते हैं-

प्रिंटर के प्रकर | Types of Printer

प्रिंट करने की क्षमता के आधार पर या प्रिंटिग सिक्वेन्स के अधार पर प्रिंटर के प्रकार-

प्रिंट करने की क्षमता के आधार पर प्रिंटर को तीन समूहों में बॉंटा गया है –

  • कैरेक्टर प्रिंटर
  • लाइन प्रिंटर
  • पेज प्रिंटर

कैरेक्टर प्रिंटर (Character printer) –

इस प्रकार के प्रिंटर, एक बार में एक ही कैरेक्टर/अक्षर प्रिन्ट करते हैं।

कैरेक्टर प्रिंटर को सीरियल प्रिंटर भी कहते हैं।

इनकी गति कैरेक्टर पर सेकेण्ड (CPS) से मापी जाती है।

Character printer लगभग 200-450 कैरेक्टर पर सेकेण्ड प्रिंट करने में सक्षम होते हैं।

इसके अन्तर्गत निम्न प्रकार के प्रिंटर आते हैं-

 

लाइन प्रिंटर (Line printer)-

इस प्रकार के प्रिंटर एक बार में एक लाइन प्रिंट करते हैं।

इन्हें Parallel printer भी कहते हैं।

इनकी गति line per minute (LPM) से मापी जाती है।

इस प्रकार के प्रिंटर लगभग 200 से 2000 लाइन प्रति मिनट छाप सकते हैं।

ज्यादातर लाइन प्रिंटर, प्रिंटिग करने की इम्पैक्ट तकनीक पर आधारित होते हैं।

लाइन प्रिन्टर, dot matrix printer का सुधरा हुआ रूप है।

Line printer के अन्तर्गत निम्न प्रकार के प्रिंटर आ‍ते हैं-

 

पेज प्रिंटर (Page printer) –

इस श्रेणी के प्रिंटर, एक बार में पूरा पेज प्रिंटर कर देते हैं।

इनकी गति काफी तेज होती है।

इनकी गति को page per minute (PPM) से मापा जाता है।

इस श्रेणी में लेजर‍ प्रिंटर आते हैं।

 


प्रिंटिग तकनीक (technique) के अधार पर या प्रिंट करने के तरीके के आधार पर प्रिंटर के प्रकार

प्रिंट करने की तकनीक के आधार पर प्रिंटर दो प्रकार के होते हैं –

  • इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact printer)
  • नान- इम्पैक्ट प्रिंटर (Non- Impact printer)

 

इम्पैक्ट प्रिंटर (Impact printer) –

यहां पर “इम्पैक्ट” का मतलब – टक्कर (टकराना) या ठोकना है।

इम्पैक्ट प्रिंटर की प्रिंटिंग तकनीक, टाइपराइटर के समान होती है।

इस तकनीक वाले प्रिंटर में प्रिंटिंग-हेड, कागज और स्याही लगे रिबन पर एक साथ चोंट कर, प्रिंटिंग का कार्य पूरा करते हैं।

इसमें धातु का बना एक हैमर (Hammer) अर्थात छोटा सा हथौड़ा या प्रिंट-हेड (print head) होता है जिसमें करैक्टर (अक्षर) लगे होतें हैं जो कागज व स्याही लगे रिबन पर टकराता है और अक्षर प्रिंट हो जाता है।

इस प्रक्रिया में, जिस कागज पर प्रिंट करना है उसे उसके स्थान पर फिक्स कर दिया जाता है और प्रिंट-हेड क्षैतिज रूप से (बाएं से दाएं) कागज व रिबन पर चलते हुए कैरेक्टर/अक्षर प्रिंट करता है। एक लाइन के पूरा हो जाने पर, दूसरी लाइन को प्रिंट करता है और यह प्रक्रिया चलती रहती है।

ऐसे भी इम्पैक्ट प्रिंटर हैं जिनके हेड दोनों दिशाओं बाएं से दाएं और दाएं से बाएं भी प्रिंटिंग का कार्य करते हैं। इनमें समय की बचत होती है और प्रिंटिंग का कार्य कम समय में पूरा हो जाता है।

इस प्रकार के प्रिंटर, ज्यादा अच्छी क्वालिटी की प्रिंटिंग नहीं करते हैं।

इस तकनीक वाले प्रिंटर – कागज, स्याही लगे रिबन और करैक्टर (अक्षर), जोकि प्रिंटिंग-हेड में लगे होते हैं तीनों पर एक साथ चोंट कर, कैरेक्टर/अक्षर/डेटा को प्रिंट करते हैं।

चूँकि इम्पैक्ट प्रिंटर टकराने या ठोकने की क्रिया द्वारा प्रिंटिंग का कार्य संपन्न करते हैं यही वजह है कि यह प्रिंट करते समय शोर ज्यादा करते हैं।

इम्पैक्ट प्रिंटर के प्रकार – Types of Impact Printer

इम्पैक्ट प्रिंटर निम्न प्रकार के होते हैं –

  • Dot Matrix Printer
  • Daisy wheel Printer
Dot Matrix Printer (DMP) –

डॉट-मैट्रिक्स प्रिंटर, एक प्रकार का कैरेक्टर-इम्पैक्ट  प्रिंटर होता है जिसमें एक प्रिंट हेड होता है जो कागज पर बाएं से दाएं व दाएं से बाएं चलकर छपाई/प्रिंटिंग के कार्य को संपन्न करता है।

डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर द्वारा छापा गया कैरेक्टर, dots (बिंदुओं) के मैट्रिक्स से मिलकर बना होता है।

 

Dot matrix printer

डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर की कार्य विधि –

डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर में, प्रिंटिंग का कार्य इसके प्रिंट हेड द्वारा किया जाता है। इसके प्रिंट हेड में अनेक pins, एक मैट्रिक्स के रूप में व्यवस्थित होतीं हैं जो अक्षरों का निर्माण करतीं हैं। अर्थात इस प्रिन्टर में अक्षरों का निर्माण प्रिन्ट हेड में पिनों के समूह द्वारा किया जाता है।

5×7, 7×9, 9×9, 9×12, 18×18, 24×24 प्रकार की matrix में pins प्रिन्ट हेड के अन्दर होती हैं।

Dot matrix

ये pins, रो एवं कॉलम में चित्र के अनुसार व्यवस्थित होती हैं।

प्रिंट करने के लिए एक बार में एक कॉलम की पिनें (pins), प्रिंट हेड से बाहर निकल कर स्याही लगे रिबन पर ठोकर मारतीं हैं उन्हीं pins का निशान, रिबन की स्याही से मिलकर, कागज पर dots (बिंदुओं) के रूप में अंकित हो जाता है। और अक्षर कागज पर अंकित हो जाता है।

इस प्रकार इसमें एक अक्षर/ कैरेक्टर कई बिंदुओं (dots) से मिलकर बनता है और कई बार (steps) में बनता है।

आप चित्र में देख सकते हैं कैसे dots (बिंदुओं) से मिलकर अक्षर बने हुए हैं –

Dot matrix example

इनकी गति 30 कैरेक्टर पर सेकंड से लेकर 1500 कैरेक्टर पर सेकंड (CPS) तक होती है।

इस प्रिंटर से एक समय में, एक ही कलर का प्रिंट लिया जा सकता है अत: यह एक मोनोक्रोम प्रिन्टर है।

इस प्रिंटर में एक कागज की एक से अधिक कॉपियॉं (प्रतियॉं)  प्राप्त करने के लिए, इनमें कार्बन-पेपर का प्रयोग किया जाता है।

इन प्रिंटरों का कोई निश्चित font set (अक्षरों का समूह) नहीं होता, ये dots (बिंदुओं) को मिलाकर एक अक्षर का निर्माण करते हैं।

इसलिए ये विभिन्न आकार, प्रकार और दुनिया के सभी भाषाओं के अक्षर/ कैरक्टर Bold, Italic आदि में  प्रिन्ट करने में सक्षम हैं। इसके साथ ही इनके द्वारा ग्रॉफिक्स एवं डिजाइन को भी प्रिन्ट किया जा सकता है।

इनकी प्रिंटिंग लागत कम होने के कारण, इनका अत्यधिक प्रयोग कार्यालयों में किया जाता है लेकिन क्वालिटी व स्पीड अन्य प्रिंटर के मुकाबले कम होती है।

 

Types of Dot Matrix Printer – डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर के प्रकार –

डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर दो प्रकार से मिलते हैं –

Unidirectional – ऐसे डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर, जिनका प्रिन्ट हेड, प्रत्येक लाइन को, एक ही दिशा से (केवल बाएं से दाएं) प्रिंट करता है, यूनिडायरेक्शनल (एकदिशीय) डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर कहलाते हैं।

Bi-directional – ऐसे डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर, जिनका प्रिन्ट हेड, एक लाइन को बाएं से दाएं और दूसरी लाइन को दाएं से बाएं प्रिंट करता है, अर्थात ये प्रिंटर दोनों दिशाओं में प्रिंट करते हैं, बाइडायरेक्शनल (द्विदिशीय) डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर कहलाते हैं।

वर्तमान समय में बाइ-डायरेक्शनल डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर ज्यादा प्रचलित हैं। दोनों दिशाओं से प्रिंट होने की वजह से कम समय लगता है।

यह एक इंपैक्ट प्रिंटर है और प्रिंटिंग करते समय काफी शोर करता है

 

Daisy Wheal Printer – डेजी व्हील प्रिन्टर

यह भी एक कैरेक्टर- इंपैक्ट प्रिंटर है, जो 1970 एवं 1980 के दशक में प्रचलित था। इसके प्रिंट हेड की आकृति एक फूल Daisy (गुलबहार) की तरह होती है, एवं इसके प्रिंट हेड में एक व्हील (चक्र) लगा होता है, यह व्हील प्लास्टिक या धातु का बना होता है (जिसकी प्रत्येक तीलियों के बाहरी छोर पर ठोस अक्षर बने होते हैं।

प्रिंटिंग के लिए इस wheal को प्रिंट हेड में फिट कर दिया जाता है और यह चक्र की तरह तेजी से घूमता रहता है। इस चक्र में कई तीलियाँ (spokes) अथवा भुजाएं होतीं हैं, जिनके बाहरी छोरों में characters (अक्षर) बने होते हैं।

जिस भी अक्षर को प्रिंट करना होता है, उस अक्षर वाली तीली (spoke) के, कागज के सामने, ठीक स्थिति में आते ही विद्युत से चलने वाला हथौड़ा (hammer) पीछे से उस तीली पर चोंट मारता है और तीली के बाहरी छोर पर लगा अक्षर, स्याही लगे रिबन से टकराकर, कागज पर वह अक्षर प्रिंट कर देता है।

अक्षर प्रिंट हो जाने के बाद, प्रिंट हेड आगे क्षैतिज दिशा में बढ़कर सारे अक्षर इसी तरह छपता जाता है।

Characteristics of Daisy Wheal Printer – डेजी व्हील प्रिन्टर की विशेषताऍं –

  • डेजी व्हील प्रिंटर में अक्षरों का एक solid font set (ठोस फोंट सेट) होता है, जोकि व्हील की तीलियों के बाहरी छोर पर अंकित होता है।
  • इसकी गति 10 से 90 कैरेक्टर पर सेकंड (CPS) होती है।
  • इसकी गुणवत्ता (quality) उच्च होती है।
  • डेजी व्हील एक लेटर क्वालिटी प्रिंटर (LQP) होता है। LQP की जरूरत वहां होती है जहां प्रिंटिंग की क्वालिटी बहुत ज्यादा मायने रखती है।

Merits / Advantages of Daisy Wheal Printer – डेजी व्हील प्रिन्टर के गुण / लाभ

  • Dot matrix printer की तुलना में प्रिन्टिग क्वालिटी बेहतर थी।
  • विश्वसनीय व टिकाऊ प्रिन्टर था।
  • उपयोग और मेन्टेन करने में आसान था।
  • Affordable कीमत।

Demerits /Disdvantages of Daisy Wheal Printer – डेजी व्हील प्रिन्टर के अवगुण / हानि–

  • यह प्रिंटर ग्राफिक्स को सपोर्ट नहीं करते थे। केवल text को ही प्रिन्ट करते थे।
  • हैमर द्वारा चोंट करने व टकराव की क्रिया होने के कारण ये प्रिंटर भी शोर करते थे।
  • धीमी गति।

इनका ज्यादा प्रयोग कार्यालयों में किया जाता था, पर आजकल इनका उपयोग बहुत कम या बंद ही हो गया है।

 

Types of Line Printer – लाइन प्रिन्टर के प्रकार –

  • ड्रम प्रिन्टर
  • बैंड प्रिंटर
  • चैन प्रिंटर
ड्रम प्रिन्टर (Drum Printer) –

ड्रम प्रिंटर में, एक बेलनाकार ड्रम लगा होता है, जिसकी सतह पर अक्षर बने/उभरे होते हैं।

ड्रम पर उभरे अक्षर कॉलम्स में व्यवस्थित होते हैं। प्रत्येक column में सभी अक्षरों के समूह से बना एक बैण्ड होता है।  जिससे कागज पर एक लाइन एक बार में छापी जा सके।

इसमें लगा ड्रम घूर्णन करता है और घूर्णन (rotation) करते हुए प्रत्येक लाइन प्रिंट करता है।

प्रत्येक बैण्ड (group of characters in vertical form)  अथवा columns के लिए, इसमें कई हैमर (hammers) होते हैं।

कागज और ड्रम के बीच एक कार्बन रिबन लगी होती है।

प्रिंट करने के लिए तेज गति का हैमर, प्रत्येक बैण्ड के उचित कैरेक्टर पर पीछे से टकराता है, कैरेक्टर, रिबन व कागज से टकराकर, कागज पर एक लाइन प्रिंट कर देता है।

चैन प्रिंटर (Chain Printer) –

चैन प्रिंटर में एक चैन लगी होती है, इस चैन में ही characters होते हैं, यह चैन बहुत तेजी से घूमती है।

सभी प्रिंट पोजीशन पर, धातु के बने हैमर्स (हथौड़ा) लगे होते हैं। प्रिंट करने के लिए हैमर (hammer) उचित कैरेक्टर (अक्षर) पर चोंट करता है अक्षर (कैरेक्टर्स), स्याही लगे हुए रिबन व कागज से टकराकर कागज पर प्रिंट हो जाते हैं।

यह एक लाइन प्रिंटर है इसलिए एक बार चैन के घूमने से, पूरी एक लाइन प्रिंट कर देता है।

बैंड प्रिंटर (Band Printer) –

बैंड प्रिंटर, चैन प्रिंटर के ही समान कार्य करते हैं, अंतर केवल इतना है कि इसमें चैन की जगह स्टील से बना हुआ एक प्रिंट-बैंड अथवा बेल्ट होता है। इस प्रिंट-बैंड में ही अक्षरों का समूह बना (उभरा) हुआ होता है। हैमर की चोंट से उचित कैरेक्टर्स, स्याही लगे हुए रिबन व कागज से टकराकर, कागज पर उचित स्थान पर प्रिंट हो जातें हैं।

Note – ये प्रिंटर्स (ड्रम, चैन एवं बैण्ड) पुराने समय में प्रचलित थे, पर ‍वर्तमान समय में इनका प्रयोग पूर्णत: बंद हो गया है।

ड्रम, चैन एवं बैण्ड प्रिन्टर्स भी impact printer के ही उदाहरण हैं।

नॉन-इम्पैक्ट प्रिन्टर (Non Impact Printer) –

नॉन-इम्पैक्ट प्रिन्टर में, प्रिंट-हेड द्वारा, कागज व रिबन को बिना स्पर्श किये अर्थात बिना चोट मारे प्रिंटिंग का कार्य संपन्न किया जाता है।

चूँकि प्रिंट-हेड कागज व रिबन पर सीधे चोंट नहीं करते, तो शोर भी नहीं होता है। यह एक ध्वनि मुक्त प्रिंटर है। यदि होती भी है तो ना के बराबर।

ये प्रिन्टर्स, प्रिंटिंग के कार्य को करने के लिए, अस्पर्श तकनीक जैसे – थर्मल ट्रांसफर, इलेक्ट्रोस्टेटिक, लेजर बीम या इंकजेट तकनीक का प्रयोग करते हैं। और एक बार में एक ही प्रति (copy) प्रदान करते हैं। है साथ ही इन‍की गति भी इम्पैक्ट प्रिन्टर्स की तुलना में ज्यादा होती है।

इन प्रिंटर्स के द्वारा हाई क्वालिटी के ग्राफिक्स और कैरेक्टर्स की छपाई संभव है पर इनकी कीमत इंपैक्ट प्रिंटर के मुकाबले ज्यादा होती है। वर्तमान समय में अत्यधिक प्रचलित हैं।

 

नॉन-इम्पैक्ट प्रिन्टर के प्रकार – Types of Non Impact Printer

नॉन इंपैक्ट प्रिंटर कई प्रकार के होते हैं –

Inkjet Printer –

यह एक नॉन- इम्पैक्ट, कैरेक्टर प्रिंटर है और इंकजेट तकनीक पर कार्य करता है। मतलब स्याही की छोटी-छोटी बूँदों के छिड़काव द्वारा प्रिंटिंग के कार्य को संपन्न किया जाता है।

इंकजेट तकनीक = स्याही की छोटी-छोटी बूँदों के फुहारों या फब्बारों द्वारा प्रिंटिंग का कार्य पूरा करना।

स्याही का छिड़काव प्रिंट हेड में बने नोजल (सूक्ष्म छिद्रों) की मदद से किया जाता है।

inkjet printer
inkjet printer

 

मोनोक्रोम (ब्लैक एंड व्हाइट) इंकजेट प्रिंटर में, केवल एक ही रंग, काले रंग के लिए नोजल्स (छिद्र) होते हैं, जबकि कलर इंकजेट प्रिंटर में चार रंगों के लिए नोजल्स (nozzles) होते हैं। चार रंगों के नोजल्स होने की वजह, कलर प्रिंटर में चार रंग की स्याही (CMYK) का प्रयोग होता है।

जहॉं –

  • C = Cyan (नीलम)
  • Y = Yellow (पीला)
  • M = Magenta (गहरा गुलाबी)
  • BK = Black (काला)

CYMK, इन चार रंगों की स्याही का प्रयोग होने के कारण Inkjet printer को CYMK Printer भी कहा जाता है।

इन चार रंगों के मिश्रण से संभी रंगों की छपाई हो जाती है।

स्याही के लिए इसमें कार्टरिज (cartridge) लगा होता है।

 

Inkjet Printer की गति –

अगर per minute page की बात करें, तो लगभग 20 से 40 पेज पर मिनट तक इनकी स्पीड होती है black and white print के लिए

जबकि color प्रिंट के लिए 8 से 20 पेज पर मिनट तक होती है।

और यदि character per second (CPS) की बात करें तो इनकी गति 40 से 300 CPS  तक होती है।

Inkjet printer को, बबल-जेट प्रिंटर (Bubble jet Printer) के नाम से भी जाना जाता है। और इसमें प्रत्येक कैरेक्टर, स्याही की बूँदों ( dots) के matrix अथवा grid के ही बने होते हैं पर ये dots इतने पास-पास होते हैं कि समझ में नहीं आते हैं।

 

Inkjet Printer के लाभ व हानि – Advantages and Disadvantages of Inkjet Printer

Pros and Cons of Inkjet Printer

Inkjet Printer के लाभ – Advantages of Inkjet Printer –
  • Black & White और color दोनों तरह की प्रिंटिंग करने में सक्षम।
  • करैक्टर व ग्राफिक्स दोनों को प्रिंट करने की सुविधा।
  • अच्छी क्वालिटी का आउटपुट
  • 20 – 40 page per minute
  • दिन-प्रतिदिन इस तकनीक में लगातार सुधार किया जा रहा है।
  • घरों व कार्यालयों दोनों क्षेत्रों के लिए उपयोगी।
  • ग्राफिक्स को भी बेहतर क्वालिटी में print करते हैं।
  • Ink भरना बहुत आसान।

 

Inkjet Printer के दोष – Disadvantages of Inkjet Printer 
  • इंकजेट प्रिंटर का सबसे बड़ा दोष इसके प्रिंट-हेड के nozzles में ink clogging (स्याही का जमाव अथवा भराव) का होना है। जिससे nozzles जाम (block) होते जाते हैं। परिणाम स्वरूप यातो प्रिंटिंग-क्वालिटी प्रभावित होती है, या फिर प्रिंट ही नही हो पाता है।
  • इंकजेट प्रिंटर की प्रिंटिंग-क्वालिटी, लेजर प्रिंटर के मुकाबला अच्छी नहीं होती है।
  • लेजर प्रिंटर के मुकाबले इसकी प्रिंटिंग लागत ज्यादा व स्पीड कम होती है।

 

इंकजेट प्रिंटर के प्रिंट-हेड में ink clogging (स्याही का जमाव अथवा भराव) का होना –

Ink clogging का मतलब – इंकजेट प्रिंटंर के प्रिंट-हेड के nozzles में, स्याही के जम जाने से nozzles का जाम हो जाना।

यदि लम्बे समय (लगभग 20 दिन है उसके बाद) तक इंकजेट प्रिंटर का प्रयोग न किया जाए तो इसके प्रिंट हेड के नोजल (छिद्र) के मुहाने (opening point) पर स्याही का जमाव होने लगता है और धीरे-धीरे स्याही पूर्णत: जम जाती है।

अगर स्याही अभी जमना शुरू हुई है तो, प्रिंट करने पर डॉक्यूमेंट्स में लाइनें आ जाती हैं और अच्छी क्वालिटी का प्रिंट-आउट नहीं प्राप्त होता है।

लेकिन यदि छिद्र पूर्णत: बंद हो गए हैं तो, प्रिंट ही नहीं हो पता है।

 

इंकजेट प्रिंटर में इंक क्लॉगिंग (ink clogging) की समस्या का समाधान –

यदि आप इंकजेट प्रिंटर का रेगुलर या उसे 3 से 5 दिन में भी इस्तेमाल कर रहे हैं तो यह समस्या आएगी ही नहीं।

पर यदि आपको काफी दिन तक प्रिंट करने की जरूरत नहीं पड़ रही है तो 3 से 5 दिन के अंतराल में प्रिंटर को चालू करके 15 से 20 मिनट के लिए छोड़ दें, जिससे ink चार्ज हो जाएगी और नहीं जमेगी।

अगर आप ऊपर बताए गए तरीकों का पालन नहीं कर पा रहे हैं और 15 से 20 दिन बाद प्रिंटर को on कर रहें हैं और प्रिंट करने पर, अगर प्रिंटिंग क्वालिटी ठीक नहीं है तो आपको nozzles को क्लीन करना होगा मतलब छिद्रों को साफ करना पड़ेगा।

इंकजेट-प्रिंटर के हेड / नोजल्स को क्लीन करना –

निम्नखित तरीकों से inkjet printer के नोजल्स को क्लीन कर सकते हैं –

  • प्रिंटर में ही nozzle को क्लीन करने की बटन होती है जिसको आप प्रेस करके नोजल को क्लीन कर सकते हैं।
  • MS-Word में print option के maintenance टैब की मदद से भी head/nozzle को clean किया जा सकता है।
  • इसके अलावा control panel के Devices and Printers ऑप्शन द्वारा, अपने प्रिन्टर का चुनाव करके  print head-nozzles cleaning आदि प्रक्रिया सम्पन्न की जा सकती है।

 

नोजल क्लीन होने में, 5 से 10 मिनट का समय लग सकता है और इस क्लीनिंग की प्रक्रिया में प्रिंटर की ink ज्यादा कंज्यूम होती है इसलिए जब जरूरत हो तभी नोजल क्लीन करना चाहिए।

पर, यदि आपने 20 दिन या उससे कहीं ज्यादा जैसे 2 महीने या 4 महीने बाद तक  प्रिंटर को ना ही उपयोग किया और ना ही on किया, जिसकी वजह से नोजल में स्याही का पूरी तरह से जमाव हो चुका है, छिद्र पूरी तरह से ब्लॉक हो गए हैं, स्याही सूख गई है – तो इस समस्या का समाधान nozzle cleaning button या option से नहीं होगा, इसके लिए आपको प्रिंटर रिपेयर करने वाले टेक्नीशियन की मदद लेनी पड़ेगी।

इंकजेट प्रिंटर की कार्य विधि –

इंकजेट प्रिंटर की कार्यविधि (working process) या छपाई की विधि भी, डॉट-मैट्रिक्स प्रिंटर की तरह ही होती है।

दोनों में फर्क केवल इतना है कि डॉट-मैट्रिक्स प्रिंटर में स्याही की बड़ी-बड़ी बूँदों द्वारा (बिंदुओं की मैट्रिक्स द्वारा) कैरेक्टर छापे जाते हैं, जबकि इंकजेट प्रिंटर में स्याही की बहुत ही छोटे-छोटे बिंदुओं (dots) का प्रयोग किया जाता है, कैरेक्टर व ग्राफिक्स को छापने में।

जिससे इनकी प्रिंटिंग क्वालिटी, डॉट-मैट्रिक्स की तुलना में बहुत ही बेहतरीन, सुन्दर व स्पष्ट होती है।

इस प्रिंटर के प्रिंट-हेड में बहुत ही छोटे-छोटे छेंदों वाले nozzles में से स्याही का छिड़काव किया जाता है। जैसे-जैसे प्रिंट-हेड चलता जाता है ये स्याही की नन्हीं-नन्हीं बूँदें कागज पर, अक्षर व ग्राफिक्स बनाती जाती हैं।

इस स्याही (ink) में, बहुत ज्यादा आयरन के अवयव होते हैं जो चुम्बकीय क्षेत्र (magnetic fiends) अर्थात डिफलेक्टिंग प्लेट से प्रभावित होते हैं इन चुम्बकीय क्षेत्र का काम स्याही की बूंदों को इधर-उधर (डिफलेक्ट) करके सही दिशा देना होता है, ताकि ये बँदें (droplets) कागज पर उचित जगह पड़ें और कैरेक्टर्स व ग्राफिक्स की छपाई संभव हो सके।

 

Laser Printer – लेज़र प्रिंटर

लेजर प्रिंटर, तीव्र गति वाला नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर है जो लेजर-बीम का उपयोग करके हाई-क्वालिटी के टेक्स्ट एवं ग्राफिक्स को कागज पर प्रिंट करता है।

यह एक पेज प्रिंटर है क्योंकि यह इलेक्ट्रोस्टेटिक इमेज और टोनर ट्रांसफर विधि का उपयोग करके, एक समय में, एक साथ ही, पूरे एक पेज को प्रोसेस व प्रिंट करता है।

इलेक्ट्रोस्टेटिक इमेज (Electrostatic Image) – जिस image या text document को प्रिंट करना है, उनका लेजर-बीम द्वारा, लाइट सेंसेटिव ड्रम पर बनाया गया, अस्थाई एवं विद्युत आवेशित प्रतिबिंब अथवा पैटर्न है।

यह प्रतिबिम्ब अथवा इलेक्ट्रोस्टेटिक इमेज, टोनर के बारीक कणों को आकर्षित कर लेता है, और कागज पर स्थानांतरित और स्थापित कर दिया जाता है। परिणामस्वरूप प्रिन्ट प्राप्त हो जाता है।

टोनर (Toner) – स्याही जो सूखी, बारीक पाउडर के रूप में होती है।

Laser Printer का आविष्कार – जेरोक्स (Xerox) कारपोरेशन के इन्जीनियर गैरी स्टार्क वेदर (Gary Stark weather) ने 1969 में किया था।

laser-printer
laser printer

 

यह प्रिन्टर, monochrome एवं color दोनों प्रकार से उपलब्ध है।

इसका उपयोग Desktop Publishing में बहुतायत से किया जाता है। इसकी मदद से text documents, post card, books, book cover, logo, banner, menu card, photographs, business repost, school/college के assignments, promotional material एवं अन्य तरह के ग्रॉफिक्स, high quality में प्रिन्ट किये जा सकते हैं।

लेजर प्रिंटर द्वारा छापे गए सभी मटेरियल्स, चाहे वे text हों या कोइ भी ग्रॉफिक्स, सभी dots से ही मिलकर बने होते हैं। ये dots ग्रिड अथवा मैट्रिक्स में व्यवस्थित होते हैं और इतने पास-पास होते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि आपस में जुड़े हुए हैं।

लेजर प्रिंटर की गुणवत्ता DPI द्वारा मापी जाती है। DPI का पूरा नाम – डॉट पर इंच (Dot Per Inch) होता है।

जहॉं DPI = एक वर्ग इंच में प्रिंटर द्वारा प्रिंट किए गए dots की संख्या।

DPI प्रिंटर के रेजॉल्यूशन को संदर्भित करता है।

जितना ज्यादा रेजॉल्यूशन (DPI) होगा उतना ही sharp व clear प्रिंट प्राप्त होगा।

Laser Printer का resolution लगभग् 300×300 DPI से 2400×2400 DPI या इससे भी ज्यादा होता है। यूजर अपनी जरूरत के आधार पर, प्रिन्ट करते समय resolution को घटा-बढ़ा सकता है।

इस प्रिन्टर की प्रिन्ट करने की क्षमता सामान्यत: (monochrome एवं color दोनों की) – 15-40 PPM (Page Per Minute) तक होती है।

Connectivity with computer – लेज़र प्रिन्टर को कम्प्यूटर से जोड़ना –

  • Wifi – wireless माध्यम
  • USB – wired माध्यम

 

लेज़र प्रिंटर के प्रकार – Types of Laser Printer on the basis of Color

प्रिन्ट करने के रंग के आधार पर लेज़र प्रिन्टर दो प्रकार के होते हैं –

  • Monochrome Laser Printer
  • Color Laser Printer
Monochrome Laser Printer –

इस प्रकार के लेजर प्रिंटर में, एक ही टोनर जो कि काले रंग का होता है इस्तेमाल किया जाता है अर्थात इस प्रकार के प्रिंटर में केवल एक ही टोनर कार्ट्रिज का प्रयोग होता है और सिर्फ काले रंग में प्रिंट आउट प्रदान करते हैं।

Text documents को प्रिंट करने के लिए कुशल होते हैं। एवं कलर-लेजर प्रिंटर से तेज गति में प्रिंट करते हैं। 20 से 40 PPM

Toner – स्याही, जो बारीक पाउडर के रूप में होती है।

 टोनर कार्ट्रिज – टोनर को रखने वाला बॉक्स टोनर कार्ट्रिज या टोनर कंटेनर कहलाता है अर्थात टोनर कार्ट्रिज के अंदर टोनर डला हुआ रहता है।

Color Laser Printer –

इस प्रकार के लेजर प्रिंटर में, चार पृथक-पृथक रंगों के टोनर का प्रयोग किया जाता है। सामान्यत: ये चार रंग CMYK – Cyan, Magenta, Yellow एवं Black होते हैं।

चार पृथक रंगों के टोनर कार्ट्रिज इन चार पृथक रंगों को समाहित किए रहते हैं।

ये चार रंग ही मिलकर, समस्त रंगों का निर्माण कर, वास्तविक रंग (original color) में आउटपुट प्रदान करते हैं।

इनका उपयोग documents एवं image को, उनके वास्तविक रंगों में प्रिंट करने के लिए किया जाता है पर इनकी स्पीड मोनोक्रोम लेजर प्रिंटर की अपेक्षा कम होती है।

इस प्रकार के प्रिन्टर में monochrome एवं color दोनों तरह के output/print प्राप्त किये जा सकते हैं। यूजर को प्रिन्ट करते समय केवल यह चुनना होगा कि वह कैसा प्रिन्ट प्राप्त करना चाहता है।

लेज़र प्रिंटर की कार्य विधि –

लेज़र प्रिंटर , लेजर बीम का प्रयोग करके फोटोसेन्सटिव ड्रम पर, print किये जाने वाले content का इलेक्ट्रोस्टेटिक इमेज बनाते हैं। यह इलेक्ट्रोस्टेटिक इमेज, toner को आकर्षित कर लेता है एवं टोनर कोटेड ड्रम से, टोनर लगी हुई image को कागज पर ट्रांसफर कर दिया जाता है। इसके बाद toner को कागज पर स्थायी रूप स्थापित करने के लिए अथवा पिघलाने के लिए,  ताप एवं दाब का प्रयोग किया जाता है। जिससे print होने वाला content/material कागज पर छप जाता है और printer द्वारा final output प्राप्त हो जाता है।

Advantages of Laser Printer – लेज़र प्रिंटर के गुण / लाभ

  • Fast printing speed
  • High quality output – high resolution की मदद से sharp एवं clear आउटपुट प्राप्त होता है।
  • Cost-effective
  • Available in Monochrome as well as color
  • Different sizes of paper support

Disadvantages of Laser Printer – लेज़र प्रिंटर के दोष / हानि

  • कलर लेज़र प्रिंटर की कीमत काफी ज्यादा होती है अन्य प्रकार के प्रिंटर के मुकाबले।

Thermal Printer – थर्मल प्रिन्टर

थर्मल प्रिंटर, एक विशेष प्रकार के प्रिंटर होते हैं, जो heat (ताप) का प्रयोग, कागज पर टेक्स्ट, इमेज आदि प्रिंट करने के लिए करते हैं।

thermal printer
thermal printer

Types of Thermal Printer – थर्मल प्रिन्टर के प्रकार

थर्मल प्रिंटर दो प्रकार के होते हैं और ये दोनों प्रकार के थर्मल प्रिंटर के कार्य करने की विधि अलग-अलग होती है –

  • Direct Thermal Printer
  • Thermal Transfer Printer

 

Direct Thermal Printer –

इस प्रकार के थर्मल प्रिंटर में थर्मोक्रोमिक पेपर (थर्मोक्रोमिक कागज) का इस्तेमाल किया जाता है जोकि heat sensitive (ताप एवं ऊष्मा के प्रति संवेदनशील) होतें हैं।

प्रिंटर के प्रिंट-हेड में कुछ heating elements होते हैं। ये हीटिंग-एलिमेंट्स छोटे-छोटे dots से मिलकर बने होते हैं और ये dots एक ग्रिड अर्थात मैट्रिक्स में व्यवस्थित होते हैं। heating elements को heated pen भी कहते हैं।

प्रत्येक heating elements (dots) को स्वतंत्र रूप से कंट्रोल अथवा activate एवं deactivate (ऑन/ ऑफ) किया जा सकता है। ये dots ही आपस में मिलकर संपूर्ण आउटपुट जैसे – टेक्स्ट, इमेज एवं अन्य ग्राफिक्स का निर्माण, कागज पर करते हैं। प्रिन्ट हुए image का प्रत्येक dot, डिजिटल image के pixel का प्रतिनिधित्व करता है।

जब किसी document (text, image आदि) को प्रिंट करना होता है तो प्रिंट-हेड में लगे ये हीटिंग एलिमेंट्स (dots), टेक्स्ट एवं ग्राफिक्स के संरचना के अनुसार एक्टिवेट किए जाते हैं। ये एक्टीवेटेड dots अथवा हीटिंग एलिमेंट्स, थर्मल पेपर के सीधे संपर्क में आते हैं तो कागज पर उससे संबंधित स्थान गर्म हो जाता है।

गर्म होने के कारण वह स्थान डार्क (काला) हो जाता है, थर्मल पेपर पर बने ये काले चिन्ह ही text एवं graphics हैं। परिणाम स्वरुप कागज पर प्रिंट प्राप्त हो जाते है।

डायरेक्ट थर्मल प्रिंटर में डॉक्यूमेंट को प्रिंट करने के लिए, किसी स्याही अथवा टोनर की जरूरत नहीं होती है। यह तो केवल heat (ताप) द्वारा ही अक्षरों एवं इमेज को कागज पर छाप देता है।

जब थर्मल पेपर, थर्मल प्रिंट हेड से गुजरता है, तो प्रिंट हेड में लगे हीटिंग एलिमेंट्स प्रिंट किए जाने वाले text/image के अनुसार, कागज को गर्म करके, उस पर काले रंग से text/image का निर्माण कर देते हैं, और हमें वांछित output/print प्राप्त हो जाता है।

थर्मल प्रिंटर द्वारा कागज पर छापा गया टेक्स्ट/इमेज आदि, प्रिंट-हेड पर लगे हीटिंग एलिमेंट्स द्वारा कागज को गर्म करने से बनते हैं। जहॉं कागज गर्म होता है, वहां काला हो जाता है और हमें काले रंग में आउटपुट  प्राप्त होता है इसमें किसी स्याही अथवा टोनर का प्रयोग नहीं किया जाता है।

Uses of Direct Thermal Printer –

Receipts (ATM एवं POS की रसीद), Labels, tickets आदि को प्रिन्ट करने के लिए।

Direct Thermal Printer द्वारा, print की गई सामग्री (text/characters), ताप या प्रकाश के सम्पर्क में आने से, समय के साथ फीके (fade) पड़ने लगते हैं।

 

Thermal Transfer Printer –

थर्मल ट्रांसफर प्रिंटर, एक नई तकनीक का थर्मल प्रिंटर है जो ताप (heat) का प्रयोग, रिबन से स्याही को कागज अथवा अन्य मैटेरियल्स जैसे की सिंथेटिक लेवल्स में स्थानांतरित (transfer) करने के लिए करता है।

रिबन में सामान्यतः wax, resin अथवा दोनों का लेपन होता है। ये wax या resin ही इस प्रिंटर के लिए स्याही हैं।

थर्मल ट्रांसफर प्रिंटर का उपयोग सामान्यतः –

Barcode labels, tags, प्रोडक्ट एवं पैकेजिंग के labels आदि को प्रिन्ट करने के लिए किया जाता है।

यह durable (long-lasting) एव high quality का प्रिंट प्रदान करता है

 

Working Process of Thermal Transfer Printer – थर्मल ट्रांसफर प्रिंटर की कार्य विधि –

थर्मल ट्रांसफर प्रिंटर का प्रिंट हेड छोटे-छोटे heating elements (grid of dots) से मिलकर बना होता है , जो रिबन की स्याही को पिघलाने का कार्य करतें हैं। रिबन पॉलिएस्टर की बनी होती है जोकि वैक्स, रेजिन अथवा wax एवं resin दोनों के मिश्रण द्वारा coated होती है। रिबन हीट-सेंसिटिव होती है।

रिबन पर लगे हुए ये वैक्स एवं रेजिन ही, इस प्रिंटर के लिए ink का कार्य करतें हैं। जोकि तरल पदार्थ के रूप में नहीं होतें हैं बल्कि ठोस पदार्थ के रूप में होतें हैं। जिसे प्रिंट-हेड द्वारा पिघलाकर कागज एवं labels पर छापा जाता है।

जब किसी पेपर अथवा लेवल को प्रिंट करना होता है, तब सर्वप्रथम प्रिन्टर, print-head में लगे छोटे-छोटे हीटिंग एलिमेंट्स (grid of dots) को गर्म करता है, dots के गर्म होने से, रिबन पर लगी स्याही पिघलती है एवं जिस भी मटेरियल में हम प्रिंट करना चाहते हैं, जैसे कि कागज या लेवल में, यह पिघली हुई स्याही स्थानांतरित हो जाती है और हमें हमारा वांछित प्रिंट प्राप्त हो जाता है।

Uses of Thermal Transfer Printer –

  • Receipt Printing – ATM receipt, POS receipt, products, and services receipt आदि।
  • Barcode labels printing
  • Patient wristbands and label printing
  • Product labels and tags printing आदि।

 

3D Printer – थ्री डायमेंशनल प्रिन्टर

3D Printing, प्रिंटिंग की एक नई तकनीक है, जिसके द्वारा डिजिटल डिजाइंस को, रियल ऑब्जेक्ट्स के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।

3D प्रिंटर, जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि यह प्रिंटर थ्री-डाइमेंशनल में चीजों को प्रिंट करके आउटपुट के रूप में प्रदान करता है।

3d printer
3d printer

 

यह प्रिंटर, कंप्यूटर में बनाए गए डिजाइन को, बिल्कुल उसी तरह वास्तविक रूप में क्रिएट कर देता है। एवं यह प्रिन्टिंग के कार्य को सम्पन्न करने के लिए, ink या toner आदि का प्रयोग नहीं करता, बल्कि उसके स्थान पर प्लास्टिक, मेटल, सिरामिक, रेजिन, कंक्रीट आदि का प्रयोग करता है और इन्हीं चीजों के द्वारा, वह रियल ऑब्जेक्ट्स बना देता है।

इस प्रिंटर का इस्तेमाल – manufacturing, healthcare, aerospace, construction, education, automotive आदि industries में बहुतायत से किया रहा है।

3D प्रिंटर, additive manufacturing तकनीक का इस्तेमाल करके objects का निर्माण करता है।

Additive manufacturing वह प्रक्रिया है जिसमें three dimensional objects को बनाने के लिए सामाग्री (materials) को परत दर परत (layer by layer) जोड़ा जाता है, जब तक पूरा object न बन जाए। इसीलिए 3D प्रिंटर को, Additive manufacturing (AM) machine के नाम से भी जाना जाता है।

Common 3D Printing Technology –

3D Printers में निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग किया जाता है –

  • FDM – Fused Deposition Modeling
  • SLA – Stereo lithography
  • SLS – Selective Laser Sintering

 

Uses of 3D Printers –

  • मानव के कृत्रिम अंग बनाने के लिए
  • खिलौने बनाने के लिए
  • डेंटल प्रोडक्ट्स जैसेकि – dental implant, crowns and bridges of Teeth.
  • प्रोडक्ट्स के प्रोटोटाइप को निर्मित करने के लिए। जैसे कार बनाने वाले कंपनी, नई कार को बनाने से पहले उसका 3D मॉडल तैयार करके, देख सकती है कि कार बनने के बाद वास्तव में कैसे दिखेगी।
  • स्पेयर पार्ट्स (नट, पुर्जे आदि) बनाने के लिए।
  • ऐसे पार्ट्स, screws आदि जिनका मिलना मुश्किल है उनको भी कंप्यूटर में डिजाइन करके, 3D प्रिंटर की माध्यम से निर्मित किया जा सकता है।
  • जूते (shoes) और चप्पलें बनाने में।
  • यहां तक की 3D प्रिंटर का इस्तेमाल करके पूरा का पूरा मकान एवं इमारत तक बनाया जा चुका है और अभी भी बनाया जा रहा है। इसमें printing material के लिए कंक्रीट का इस्तेमाल किया जाता है।
  • बर्तन, कुर्सी, टेबल, दरवाजा आदि बनाने में।
  • Fashion accessories के निर्माण में।
  • पसंद के अनुरूप phone case, ज्वेलरी एवं घरों को डेकोरेट करने के लिए सामग्रियां बनाने में। मतलब कस्टमाइज्ड मैन्युफैक्चरिंग में।

 

ऐसी कोई भी डिजाइन, जिसे कंप्यूटर में बनाया जा सकता है, उसे बेशक 3D प्रिंटर के द्वारा प्रिंट किया जा सकता है।

3D प्रिंटिंग तकनीक को दिन प्रतिदिन विकसित किया जा रहा है एवं सस्ते, आसन एवं उच्चतम कार्य कुशलता वाले 3D प्रिंटर बनाने की कोशिश की जा रही है।


 

प्लॉटर प्रिंटर – (Plotter Printer)

प्लॉटर वास्तव में एक प्रकार का प्रिंटर ही है जिसका उपयोग टेक्स्ट, इमेज, ड्राइंग, ग्राफ़ और अन्य प्रकार के डिज़ाइन और ग्राफिक्स को बड़े आकार एवं उच्च गुणवत्ता के साथ प्रिंट करने के लिए किया जाता है। इसमें ड्राइंग बनाने के लिए पेन, पेंसिल एवं मार्कर आदि राइटिंग टूल का उपयोग किया जाता है। ये राइटिंग टूल, सिंगल या मल्टी कलर के हो सकते हैं एवं ऑटोमेटेकली मोटर द्वारा चलाए जाते हैं।

plotter printer

प्लॉटर, सामान्यत: वेक्टर ग्रॉफिक्स के सिद्धान्त पर कार्य करता है, जिसमें कोई भी डिजाइन बनाने के लिए lines, circles, curves एवं अन्य shapes का प्रयोग किया जाता है।

इसके विपरीत अन्य प्रकार के प्रिन्टर रास्टर ग्रॉफिक्स के सिद्धान्त पर कार्य करते हैं, जिसमें कोई भी image, text आदि छोटे-छोटे dots (pixels) से मिलकर बने होते हैं। एवं dots, ग्रिड अथवा मैक्ट्रिक्स में व्यवस्थित होते हैं।

इसका उपयोग – होर्डिंग, पोस्टर, बैनर, स्टीकर, ग्राफ, चार्ट, जियोग्रॉफिकल मैप, भवन/ बिल्डिंग का नक्सा, आर्किटेक्चरल डायग्राम, टेक्सटाइल डिजाइन आदि को ड्रॉ अथवा प्रिंट करने के लिए किया जाता है।

 


Difference between Impact and Non-impact printer – इम्पैक्ट और नॉन इम्पैक्ट प्रिंटर के बीच अंतर

Impact printer Non-impact printer
जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है कि इम्पैक्ट प्रिंटर – टकराव (Impact) या ठोंकाई की प्रक्रिया द्वारा प्रिंटिंग का कार्य पूरा करते हैं। नॉन इम्पैक्ट प्रिंटर में इम्पैक्ट या ठोंकाई की प्रक्रिया का प्रयोग नहीं होता है।
इस प्रकार के प्रिंटर्स शोर अधिक करते हैं। शोर नहीं करते, यदि होता भी है, तो ना के बराबर।
इनकी गति ज्यादा नहीं होती है। ये अपेक्षाकृत अत्यधिक गति के साथ छपाई करते हैं।
इनकी प्रिंटिंग क्वालिटी, नॉन इम्पैक्ट प्रिंटर्स के मुकाबले काफी कम होती है इनकी प्रिंट क्वालिटी बेहतर होती है।
इनकी कीमत अपेक्षाकृत कम होती है। Non-impact printer, महँगे होते हैं।
सीमित प्रकार के कार्यों में प्रयोग। व्यापक रूप से विभिन्न कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इसके अंतर्गत कैरेक्टर व लाइन प्रिंटर आते हैं। इनमें तीनों प्रकार के प्रिंटर शामिल है – कैरेक्टर, लाइन, व पेज प्रिंटर
इन प्रिंटर से उच्च क्वालिटी के अक्षर व ग्रॉफिक्स प्रिंट नहीं किया जा सकता है। नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर, उच्च क्वालिटी के ग्रॉफिक्स और टेक्स्ट/ कैरेक्टर को प्रिंट करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
Impact printer में, कार्बन पेपर का उपयोग कर एक बार में ही कई प्रतियॉं (copies) प्राप्त की जा सकती है जबकि इन प्रिंटर में एक बार में एक ही प्रति (copy) प्रिंट की जा सकती है।
उदाहरण –

  • Dot Matrix Printer
  • Daisy wheel Printer
उदाहरण –

  • Inkjet Printer
  • Laser Printer
  • Thermal Printer
  • Electro thermal Printer
  • 3D Printer

 

प्रश्न – क्या Printer में भी मेमोरी (memory) होती है?

उत्तर – हाँ – प्रिंटर में भी मेमोरी होती है।

प्रिन्टर में RAM व  ROM दोनों प्रकार की memory होती है।

ROM का प्रयोग प्रिंटर के लिये software, drivers व स्थायी निर्देश संग्रहित करने के लिए किया जाता है।

जबकि RAM का प्रयोग – Computer से प्रदान किये गये आउटपुट को अस्थायी रूप से संग्रहित करने के लिए किया जाता है।

Computer से प्राप्त हुए output को, प्रिंट करने के लिए, जैसे ही हम कम्प्यूटर को आदेश देते हैं, कम्प्यूटर तुरन्त ही output, प्रिन्टर को प्रदान कर देता है। चूँकि कम्प्यूटर की गति अत्यधिक होती है, उसने तो तुरन्त ही printer को output प्रदान कर दिया, पर printer की गति कम्प्यूटर की तुलना में काफी कम होती है, वह तुरन्त ही सारे document को प्रिन्ट करने में सक्षम नही है।

इसीलिए printer, कम्प्यूटर से प्राप्त output को अपनी RAM मेमोरी में स्टोर कर लेता है, और अपनी क्षमता व गति (speed) के अनुसार धीरे-धीरे print करता है।


I hope, आपको यह आर्टिकल – “प्रिंटर क्या है इसके प्रकार – Printer and its typesin Hindi” – पसंद आया होगा।

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प्लॉटर क्या है एवं इसके प्रकार

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